देहरादून/चमोली: उत्तराखंड के ऐतिहासिक गौचर मेला का आज भव्य उद्घाटन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने किया। सात दिनों तक चलने वाला यह पारंपरिक मेला सांस्कृतिक कार्यक्रमों, खेलकूद प्रतियोगिताओं, स्थानीय उत्पादों की प्रदर्शनी और लोक संस्कृति के विविध रंगों से सरोबार रहेगा।
मेले के दौरान सुरक्षा, पार्किंग, परिवहन, साफ-सफाई और गौचर बाजार के सौंदर्यीकरण की व्यवस्थाएं प्रशासन द्वारा पहले से ही सुनिश्चित कर दी गई हैं।
गौचर मेले की शुरुआत—भोटिया जनजाति की पहल से जन्मा बड़ा व्यापारिक केंद्र
गौचर मेले की शुरुआत तिब्बत सीमा से लगे पिथौरागढ़ और चमोली जनपदों में रहने वाली भोटिया जनजाति की पहल पर हुई। शुरू में यह स्थान स्थानीय लोगों की रोजमर्रा की आवश्यकताओं का हाट बाजार था, जिसने समय के साथ एक विराट मेले का रूप ले लिया।
इसी क्रम में नीती-माणा घाटी के जनजातीय क्षेत्र के प्रमुख व्यापारी और जनप्रतिनिधि स्व. बाल सिंह पाल, पान सिंह बमपाल और गोविंद सिंह राणा ने भी चमोली जिले में एक बड़े व्यापारिक मेले के आयोजन का विचार प्रस्तुत किया। उन्होंने यह सुझाव प्रसिद्ध पत्रकार एवं समाजसेवी स्व. गोविंद सिंह नोटियाल के सामने रखा।
गढ़वाल के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर के सुझाव और मार्गदर्शन पर वर्ष 1943 में गौचर में व्यापारिक मेले का औपचारिक आयोजन शुरू किया गया। समय के साथ यह मेला सिर्फ व्यापारिक आयोजन न रहकर औद्योगिक, सांस्कृतिक और सामाजिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बन गया।
कभी उत्तराखंड का सबसे बड़ा मेला रहा है गौचर
गौचर मेला वर्षों तक उत्तराखंड का सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध मेला माना जाता रहा है। यहां आयोजित सांस्कृतिक प्रस्तुतियों, ग्रामीण खेल प्रतियोगिताओं और कृषि प्रदर्शनी ने इसे विशेष पहचान दी।
कृषि मेले के दौरान लाई गई विशाल लौकी और मूली जैसे उत्पाद हमेशा आकर्षण का केंद्र रहे हैं और लोगों को आश्चर्यचकित करते रहे हैं।
सात दिन तक सजेगा सांस्कृतिक उत्सव
मेले के सात दिनों में—
- पर्वतीय लोक नृत्य व सांस्कृतिक प्रस्तुतियां
- खेल प्रतियोगिताएं
- स्थानीय कारीगरों, महिला समूहों और किसानों की प्रदर्शनी
- पारंपरिक उत्पादों की बिक्री
- पर्यटन व औद्योगिक स्टॉल
मेले की शोभा बढ़ाएंगे।
गौचर और आसपास के क्षेत्रों में मेले को लेकर उत्साह चरम पर है और लोगों की भारी भीड़ उमड़ रही है।







