उत्तराखंड इस समय एक गहरी सामाजिक–राजनीतिक संकट से गुजर रहा है। बीते दिनों सामने आई तीन घटनाओं ने प्रदेश की कानून–व्यवस्था, राजनीतिक संरक्षण और भूमाफिया–पुलिस गठजोड़ पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
पहला मामला: पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का भांजा-
सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में विक्रम सिंह राणा, जो पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के भांजे बताए जा रहे हैं, ने भू-माफिया और पुलिस पर 18 करोड़ की धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। वीडियो में विक्रम सिंह राणा इतने हताश दिखे कि उन्होंने आत्महत्या तक की धमकी दे डाली।
यह बेहद चिंताजनक है कि सत्ता से जुड़े परिवार का सदस्य ही यदि न्याय और कार्रवाई के लिए मजबूर होकर आत्महत्या की धमकी दे रहा है, तो आम जनता की स्थिति कितनी भयावह होगी, इसका सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
दूसरा मामला: पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का पत्र-
18 जुलाई को हरिद्वार के सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा डीजीपी को लिखा गया पत्र अब वायरल हो रहा है। पत्र में उत्तरकाशी निवासी अंकित सिंह रावत से देहरादून में 50 करोड़ की धोखाधड़ी का जिक्र किया गया था। पत्र में कहा गया कि मामले में संतोषजनक कार्रवाई नहीं हुई है।
जब खुद राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री को कार्रवाई न होने की शिकायत करनी पड़ रही है, तो यह स्पष्ट संकेत है कि पुलिस और प्रशासनिक मशीनरी पर भूमाफियाओं और राजनीतिक दबाव का कितना गहरा असर है।
तीसरा मामला: पौड़ी का आत्महत्या प्रकरण-
21 अगस्त को पौड़ी ब्लॉक के तलसारी गांव में 32 वर्षीय जितेंद्र सिंह ने अपनी कार के अंदर आत्महत्या कर ली। अपने अंतिम नोट में उन्होंने भाजपा नेता हिमांशु चमोली पर आरोप लगाया कि उसने उनके करीब 35 लाख रुपये हड़प लिए। मामले की गंभीरता को देखते हुए भाजपा युवा मोर्चा ने हिमांशु चमोली को तत्काल प्रभाव से प्रदेश मंत्री पद से हटा दिया। लेकिन सवाल यह है कि एक व्यक्ति को आखिरकार आत्महत्या जैसे कदम तक क्यों पहुँचना पड़ा?
उत्तराखंड में बढ़ता अविश्वास और भय-
इन तीनों मामलों को जोड़कर देखा जाए, तो तस्वीर बेहद डरावनी है—
भूमाफिया खुलेआम लोगों से करोड़ों की ठगी कर रहे हैं।
पीड़ित न्याय की गुहार लगाने के बजाय आत्महत्या की धमकी दे रहे हैं।
सत्ता और पुलिस के गठजोड़ ने आम जनता का विश्वास डगमगा दिया है।
राजनीतिक संरक्षण के बिना ऐसे घोटाले संभव नहीं।
उत्तराखंड में जमीन से जुड़े घोटालों की बाढ़ सी आ गई है। कभी 18 करोड़ की धोखाधड़ी, कभी 50 करोड़ का स्कैम और कभी लाखों की ठगी। पीड़ित न्याय के लिए दर–दर भटकते हैं, जबकि आरोपी राजनीतिक संरक्षण और सत्ता–पुलिस गठजोड़ के सहारे बच निकलते हैं।
अगर हालात पर जल्द नियंत्रण नहीं पाया गया, तो यह संकट प्रदेश की सामाजिक संरचना और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर गहरा आघात करेगा। यह सिर्फ आर्थिक अपराध नहीं रह गया है, बल्कि एक मानव संकट का रूप ले चुका है, जहाँ न्याय की उम्मीद खो चुके लोग आत्महत्या को अंतिम विकल्प मान रहे हैं।







