नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट में राज्य मूल की महिलाओं को सरकारी नौकरियों और उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में 30 प्रतिशत सीधा आरक्षण दिए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई हुई।
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने संक्षिप्त सुनवाई के बाद राज्य सरकार के अनुरोध पर अगली तिथि दो सप्ताह बाद निर्धारित की।
सरकार बोली — महाधिवक्ता उपलब्ध नहीं, इसलिए स्थगन
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि—
यह मामला महिलाओं को 30% आरक्षण से जुड़ा अत्यंत महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दा है।
राज्य की ओर से इस प्रकरण की पैरवी महाधिवक्ता करते हैं, जो आज उपस्थित नहीं हैं।
लिहाजा सरकार ने अगली सुनवाई के लिए समय मांगा, जिसे अदालत ने मंजूर कर लिया।
कोर्ट पहले ही दे चुका है राहत
इससे पूर्व हाईकोर्ट ने—
महिलाओं को 30% सीधा आरक्षण देने वाले शासनादेश पर अंतरिम रोक लगाई थी
याचिकाकर्ताओं को आयोग की परीक्षा में बैठने की अनुमति दी थी
याचिकाकर्ताओं का तर्क — यह आरक्षण असंवैधानिक
हरियाणा और उत्तर प्रदेश की महिला अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में यह कहते हुए याचिकाएं दायर की हैं कि—
उत्तराखंड मूल की महिलाओं को 30% सीधा आरक्षण देने से उनकी प्रतियोगी परीक्षाओं में भागीदारी प्रभावित हो रही है।
याचिकाओं में कहा गया है कि—
- यह आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 14, 16, 19 और 21 का उल्लंघन है
- किसी भी राज्य को जन्मस्थान या स्थायी निवास के आधार पर आरक्षण देने का अधिकार नहीं है
- 2001 और 2006 में जारी शासनादेश निरस्त किए जाएं
PSC परीक्षा का मुद्दा बना केंद्र
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि—
- UKPSC ने 31 विभागों में डिप्टी कलेक्टर समेत 224 पदों के लिए अगस्त 2021 में विज्ञापन जारी किया था
- 26 मई 2022 को प्री परीक्षा परिणाम घोषित हुआ
- अनारक्षित श्रेणी में दो अलग कट-ऑफ जारी किए गए
| श्रेणी | कट ऑफ |
| उत्तराखंड मूल की महिलाएं | 79 |
| बाहर की महिला अभ्यर्थी | 79 से अधिक अंक होने के बावजूद बाहर |
याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि उन्हें आरक्षण नियम के चलते चयन प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया।
क्या है अगला चरण?
अब यह मामला दो सप्ताह बाद फिर से सुना जाएगा।
अदालत अगले चरण में —
- आरक्षण की संवैधानिक वैधता
- आयोग की चयन प्रक्रिया पर प्रभाव
जैसे महत्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार करेगी।








