देहरादून में बाल दिवस के अवसर पर देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल की शुरुआत उत्साहपूर्ण माहौल में हुई। कार्यक्रम की शुरुआत प्रसिद्ध लेखक रस्किन बॉन्ड के ऑनलाइन संबोधन से हुई। उनके संदेश के बाद ‘रस्किन बॉन्ड लिटरेरी अवॉर्ड’ वितरित किए गए।
बडिंग राइटर श्रेणी में मायरा पारेख विजेता रहीं और ओजस्वी अग्रवाल रनर-अप बनीं। प्रोमिसिंग राइटर्स श्रेणी में अमिताभ बसु को सम्मान मिला। वहीं, शायरी श्रेणी में हर्षित दीक्षित को अवॉर्ड दिया गया और प्रतीक साखरे रनर-अप रहे।
फेस्टिवल में कई दिग्गज हस्तियों की मौजूदगी
कार्यक्रम में पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, रूपा पाई, शोभा थरूर श्रीनिवासन, जया किशोरी और ‘सितारे ज़मीन पर’ फिल्म की टीम समेत कई प्रमुख हस्तियां शामिल हुईं।
पहले दिन मुख्य वक्ता के रूप में शामिल पूर्व चीफ जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ से स्कूली छात्रों ने न्यायपालिका, लोकतंत्र में न्यायालय की भूमिका और भारतीय न्यायिक व्यवस्था से जुड़े कई गंभीर व जिज्ञासापूर्ण सवाल पूछे।
पूर्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने दिए शांत और विस्तारपूर्ण जवाब
न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी, छात्रों के योगदान और देश की न्याय व्यवस्था पर बढ़ते दवाब जैसे विषयों पर छात्रों ने सीधे सवालों की बौछार की।
पूर्व चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने हर सवाल का बेहद गम्भीर और धैर्यपूर्ण तरीके से उत्तर दिया। उनके उत्तरों में भारत की न्यायिक प्रणाली की गहरी समझ और संवेदनशीलता साफ झलकती रही।
“क्या कभी अपने फैसले पर संदेह हुआ?”—छात्र ने किया सीधा सवाल
एक छात्र ने पूछा कि सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश रहते हुए क्या कभी उन्हें अपने ही फैसले पर संदेह हुआ?
इस पर चंद्रचूड़ ने कहा—
“न्याय केवल फैसला सुनाने से पूरा नहीं होता। असली न्याय तब होता है जब लोगों को भी महसूस हो कि न्याय हुआ है।”
नेतृत्व पर उन्होंने कहा—
“सच्चा नेतृत्व उदाहरण बनकर दिखाया जाता है।”
वहीं असफलताओं पर बोले—
“गलतियां हर सीखने की प्रक्रिया का हिस्सा होती हैं, उन्हें स्वीकार करना जरूरी है।”
फेस्टिवल के शाम के सत्र में आध्यात्मिक कथावाचिका जया किशोरी की मौजूदगी ने कार्यक्रम को और आकर्षक बना दिया।
मीडिया से बोले—रील्स के दौर में किताबें और फेस्टिवल बेहद जरूरी
मीडिया से बात करते हुए पूर्व चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इस तरह के आयोजन आज की युवा पीढ़ी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
उन्होंने कहा—
“आज की दुनिया 15 सेकंड की रीलों की आदी हो चुकी है। हम स्क्रॉलिंग के दौर में जी रहे हैं। ऐसे समय में किताबें और लिटरेचर फेस्टिवल बच्चों की रचनात्मकता को निखारने में बड़ी भूमिका निभाते हैं।”
पढ़ने की आदत अब भी मजबूत
उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि बड़ी संख्या में लोग पढ़ने, लिखने, कविताओं और सांस्कृतिक शिक्षा को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों में रुचि दिखा रहे हैं।
“पढ़ने की आदत आज भी जिंदा है और मजबूती से कायम है।”
देहरादून लिटरेचर फेस्टिवल का पहला दिन जिज्ञासा, संवाद और ज्ञान के नए आयामों से भरा हुआ रहा।







